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ग़ज़ल
दिल-ए-ना-सुबूर को फिर वही बुत-ए-बेवफ़ा की तलाश है
ग़म-ए-इब्तिदा तो उठा चुका ग़म-ए-इंतिहा की तलाश है
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
लरज़ लरज़ के दिल-ए-ना-तवाँ ठहर ही न जाए
फ़िराक़-ए-साज़ कहीं रूह-ए-नग़्मा मर ही न जाए