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ग़ज़ल
दिल-ए-सितम-ज़दा बेताबियों ने लूट लिया
हमारे क़िबले को वहहाबियों ने लूट लिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दिल-ए-सितम-ज़दा को जैसे कुछ हुआ ही नहीं
ख़ुद अपने हुस्न से यूँ बे-ख़बर गया कोई
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
सीने में दिल-ए-ग़म-ज़दा ख़ूँ हो गया शायद
बे-वज्ह भी होते हैं कहीं अश्क-ए-रवाँ सुर्ख़