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ग़ज़ल
वो जो इक चेहरा था आँखों का दिलासा 'अब्बास'
हम ने उस चेहरे की ‘उम्रों से ज़ियारत नहीं की
अरसलान अब्बास
ग़ज़ल
दिलासा कोई झूटा दूँ बताओ क्या ये मुमकिन है
मैं सब कुछ भूल जाऊँ और उसे सब याद हो मेरा
मुबारक लोन
ग़ज़ल
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा
तिरे जाते ही फिर मुझ को ग़म-ए-दुनिया पकड़ लेगा