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ग़ज़ल
मोनी गोपाल तपिश
ग़ज़ल
रक़्स-कुनाँ हैं उस की यादें कुछ यूँ मेरे मन आँगन
जैसे किसी रक़्क़ासा के पैरों में घुंघरू की छन-छन