aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "faiz ahmad faiz"
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िलहम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहींजो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तिदा करोवक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है
''आप की याद आती रही रात भर''चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
'फ़ैज़' तकमील-ए-ग़म भी हो न सकीइश्क़ को आज़मा के देख लिया
दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोईतो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही
बात बस से निकल चली हैदिल की हालत सँभल चली है
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री हैतलाश में है सहर बार बार गुज़री है
चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँसुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं
उम्र बे-सूद कट रही है 'फ़ैज़'काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए
दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मोहर लगती हैतो 'फ़ैज़' दिल में सितारे उतरने लगते हैं
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगीसुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ीज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी
उम्र-ए-जावेद की दुआ करते'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई कारंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से हैन शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैंजैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं
तुझे पुकारा है बे-इरादाजो दिल दुखा है बहुत ज़ियादा
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहींसद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
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