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ग़ज़ल
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़रंगी शीशागर के फ़न से पत्थर हो गए पानी
मिरी इक्सीर ने शीशे को बख़्शी सख़्ती-ए-ख़ारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हाँ वो मिलने आएँगे रहम भी कुछ फ़रमाएँगे
हुस्न मगर चुटकी लेगा फिर क़ातिल बन जाएँगे