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ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सर-बुलंदी हमें मिल सकती है लेकिन ऐ 'ग़ुबार'
आज मिल्लत के जवानों में तग-ओ-ताज़ नहीं
ग़ुबार किरतपुरी
ग़ज़ल
कहीं गर्म बज़्म-ए-हबीब है कहीं सर्द महफ़िल-ए-यार है
कहीं इब्तिदा-ए-सुरूर है कहीं इंतिहा-ए-ख़ुमार है
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
मुहीत दौर-ए-साग़र चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम है साक़ी
ग़ुलाम-ए-चश्म-ए-मैगूँ गर्दिश-ए-अय्याम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
हम बगूले की तरह दश्त में फिरते हैं 'ग़ुबार'
जोश-ए-वहशत ने कुछ ऐसा हमें आज़ाद किया