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ग़ज़ल
ग़ुबार-ए-ज़ुल्मत-ए-दौराँ में अट गया हूँ मैं
वो चाँद हूँ कि जो महवर से हट गया हूँ मैं
इक़बाल मजीदी
ग़ज़ल
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाए क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
'मुसहफ़'-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न की आयात के बा'द
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
आह वो तीर-ए-नीम-कश जिस का न हो कोई हदफ़