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ग़ज़ल
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
ग़ौर से देखते हैं तौफ़ को आहु-ए-हरम
क्या कहें उस के सग-ए-कूचा के क़ुर्बां होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
सिर्फ़ ख़ुश्बू की कमी थी ग़ौर के क़ाबिल 'क़तील'
वर्ना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मैं मुजरिम हूँ मुझे इक़रार है जुर्म-ए-मोहब्बत का
मगर पहले तो ख़त पर ग़ौर कर लो फिर सज़ा देना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
किस किस को तुम भूल गए हो ग़ौर से देखो बादा-कशो
शीश-महल के रहने वाले पत्थर ढोने वाले हैं