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ग़ज़ल
ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है
नए पत्तों की आहट से भी शाख़ें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
मिरी ही गोद में क्यूँ कट के गिर पड़े हैं 'नदीम'
अभी दुआ के लिए थे जो हाथ उठाए हुए
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
तक़्सीर 'मुसहफ़ी' की होवे मुआफ़ साहिब
फ़रमाओ तो तुम्हारे ला उस को गोड़ डालूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मायूसियों की गोद में दम तोड़ता है इश्क़
अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी नहीं है बात