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ग़ज़ल
हामिल-ए-असरार-ए-फ़ितरत हूँ गदा भी हूँ तो क्या
बात ये काफ़ी है मुझ को फ़ख़्र करने के लिए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
अहल-ए-दुनिया वाक़िफ़-ए-असरार-ए-पिन्हाँ हो गए
दास्तान-ए-ग़म सुना कर हम पशेमाँ हो गए
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
हम से मिल के फ़ितरत के पेच-ओ-ख़म को समझोगे
हम जहान-ए-फ़ितरत का इक सुराग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
तो इस बातिल--कदे में ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन
शोहरत-ए-ग़म के लिए रौनक़-ए-बाज़ार न बन