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ग़ज़ल
हर सितम लुत्फ़ है दिल ख़ूगर-ए-आज़ार कहाँ
सच कहा तुम ने मुझे ग़म से सरोकार कहाँ
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे
ज़ख़्म पा जाए तो कम्बख़्त नमक-दाँ माँगे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
हम ऐसे खोए कि फिर तेरा आस्ताँ न मिला
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
दामन-ए-दिल पर उभर आई हैं तस्वीरें बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया
मगर बहार में दिल शोरिशों से डर सा गया
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
लुत्फ़ ये है जिसे आशोब-ए-जहाँ कहता हूँ
उसी ज़ालिम को फ़रोग़-ए-दिल-ओ-जाँ कहता हूँ
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता
दिल से कुछ दूर है ज़ालिम की अना का रिश्ता
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़
बे-गुनाही के सिवा कौन था बिस्मिल की तरफ़
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे
दिल से अहद-ए-ख़ामोशी कैसे गुफ़्तुगू कीजे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले
दूर साहिल से किसी मौज-ए-गुरेज़ाँ की तरह
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है
ग़ालिबन कुछ शैख़ को ज़ोम-ए-ख़िरद-मंदी भी है