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ग़ज़ल
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
चलो अब मान भी लो तुम तुम्हें ज़ेहनी मसाइल हैं
ज़रा सी बात पे करते हो तुम अच्छा-भला ग़ुस्सा
शाज़िया नियाज़ी
ग़ज़ल
वो कि हर बात पे कहते हैं मुझे तू क्या है
ऐसे अंदाज़-ए-तकल्लुम को भला क्या कहिए
उस्ताद वजाहत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
आप ख़ामोश हर इक बात पे हो जाते हैं
क्या किसी को यूँही इल्ज़ाम दिया जाता है