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ग़ज़ल
इन दिनों हज़रत-ए-यूसुफ़ की वो ना-क़दरी है
नहीं बुढ़िया भी ख़रीदार बुरी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कलाम-ए-पाक में है ज़िक्र-ए-हज़रत-ए-यूसुफ़
ये हुस्न-ओ-इश्क़ हर इक दास्ताँ में रहते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
क्यों क्या कहेंगे हज़रत-ए-यूसुफ़ जवाब में
चोरी किया है दिल जो ज़ुलेख़ा का ख़्वाब में
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
न छोड़ी हज़रत-ए-यूसुफ़ ने याँ भी ख़ाना-आराई
सफ़ेदी दीदा-ए-याक़ूब की फिरती है ज़िंदाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल में यूँ आती है तेरी याद ऐ यार-ए-अज़ीज़
मिस्र में ज्यूँ हज़रत-ए-यूसुफ़ की थी आने में धूम
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-वा'इज़ तुझे मेरा पता क्यूँकर मिले
जिस्म के का'बे में मानिंद-ए-ख़ुदा रहता हूँ मैं
जमील यूसुफ़
ग़ज़ल
क़तरों के लब पे शोर-ए-अनल-बहर है रवाँ
तक़लीद क्या ये हज़रत-ए-मंसूर की नहीं