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ग़ज़ल
हाँ ये काफ़िर उसी हुजरे में मिला था मुझ को
एक मोमिन जहाँ सज्दे में मिला था मुझ को
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
पाक दामन थी ये जब तक थी मिरे हुजरे में
छोड़ के मुझ को गुनहगार हुई है दुनिया