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ग़ज़ल
तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना
मिरे अँधेरों की फ़िक्र छोड़ो बस अपने घर का ख़याल रखना
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
अब के बहार ये कैसी आई कैसा ये दस्तूर हुआ
अहमद ज़िया
ग़ज़ल
फिर इक तीर सँभाला उस ने मुझ पे नज़र डाली
आख़िरी नेकी थी तरकश में वो भी कर डाली