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ग़ज़ल
ईफ़ा-ए-अहद है कि क़यामत का शोर है
तुम खुल के कह न दो कि ज़बाँ हम ने दी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
क़ासिद किया है अहद जो ईफ़ा-ए-अहद का
सुब्ह-ए-उमीद-ए-वस्ल हुई अपनी शाम-ए-शौक़
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
'अख़्तर' यक़ीन-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा तो कर लिया
ईफ़ा-ए-'अह्द तक ही जियो तो जिया न जाए