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ग़ज़ल
न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न कर तक़लीद ऐ जिबरील मेरे जज़्ब-ओ-मस्ती की
तन-आसाँ अर्शियों को ज़िक्र ओ तस्बीह ओ तवाफ़ औला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
के-पी-के अफ़्ग़ानिस्तान है और बलोचिस्तान ईरान
सिंध है चीन में और प्यारा पंजाब अरब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
अव्वलन उस बे-निशाँ और बा-निशाँ को इश्क़ है
ब'अद-अज़ाँ सर हल्क़ा-ए-पैग़मबराँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बचा कर दामन-ए-ईमाँ रवाँ हो जानिब-ए-मंज़िल
ये बाज़ार-ए-जहाँ तो हश्र का सामान रखता है
खुबैब ताबिश
ग़ज़ल
तिलिस्म इक हुस्न ख़ल्क-अल्लाह के आलम का दिल पे है
फिरो ईरान-ओ-तुर्किस्तान फ़रंगिस्ताँ-ओ-यूना है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले