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ग़ज़ल
तुझ लब की सिफ़त ला'ल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
मक़्सूद-ए-दिल है उस का ख़याल ऐ 'वली' मुझे
ज्यूँ मुझ ज़बाँ पे नाम-ए-मोहम्मद मुराद है
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
छुपी बातें अपस दिल की सुना आहिस्ता आहिस्ता
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता
कि ज्यूँ गुलशन में आती है बहार आहिस्ता-आहिस्ता
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
सर उपर उस के बगूला ताज-ए-सुल्तानी हुआ
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
गुल ओ रैहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
वो जो है अली-ए-वली वसी है मोहम्मद-ए-अरबी अख़ी
सो तू अब्द-ए-ख़ास-ए-करीम है उसे दुश्मनी है नुसैर से