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ग़ज़ल
इंतिख़ाब-ए-अहल-ए-गुलशन पर बहुत रोता है दिल
देख कर ज़ाग़-ओ-ज़ग़्न को ख़ुश-नवाओं की जगह
हबीब जालिब
ग़ज़ल
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
बला से उस की गर उस में किसी मुज़्तर का दम निकले
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ग़म नतीजा है ख़ुशी की इंतिहा का ऐ 'कलीम'
दिल की इक इक मौज मौज-ए-शादमानी हो तो क्या