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ग़ज़ल
बाबा अलिफ़ इरशाद-कुनाँ हैं पेश-ए-अदम के बारे में
हैरत बे-हैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुझ से इरशाद ये होता है कि समझूँ उन को
और फिर भीड़ में दुनिया की वो खो जाते हैं
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
बंद दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं
चंद सज्दों से तिरी ज़ात में शामिल हुआ मैं