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ग़ज़ल
बाबा अलिफ़ इरशाद-कुनाँ हैं पेश-ए-अदम के बारे में
हैरत बे-हैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुझ से इरशाद ये होता है कि समझूँ उन को
और फिर भीड़ में दुनिया की वो खो जाते हैं
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
बहार अंजाम समझूँ इस चमन का या ख़िज़ाँ समझूँ
ज़बान-ए-बर्ग-ए-गुल से मुझ को क्या इरशाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर कुछ नहीं कहते मगर इरशाद होता है
हम उस के हैं जो हम पर हर तरह बर्बाद होता है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
बंद दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं
चंद सज्दों से तिरी ज़ात में शामिल हुआ मैं