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ग़ज़ल
है सरीर-ए-ख़ामा रेज़िश-हा-ए-इस्तिक़्बाल-ए-नाज़
नामा ख़ुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए-परवाज़ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इक बच्चे की आँख में जैसे रौशन हो मासूम ख़ुशी
बिल्कुल ऐसे होते हैं हम आप के इस्तिक़बाल में ख़ुश
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
दश्त-ए-वहशत में बगूला था कि दीवाना तिरा
रूह-ए-मजनूँ बहर-ए-इस्तिक़बाल आ कर ले गई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा
पेट है ख़ाली आँख में हसरत हाथों में गुल-दस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
बहार आई है इस्तिक़बाल करने बाब-ए-ज़िंदाँ तक
नहीं मालूम 'सीमाब' आज कौन आज़ाद होता है