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ग़ज़ल
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाए क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुम्हारे साथ होने का मिला ये फ़ाएदा मुझ को
तुम्हारे साथ होता हूँ तो मैं जाहिल नहीं लगता
राज़ देहलवी
ग़ज़ल
मुझ को ये सूझता है नाहक़ तू जान देगा
इक दिन इसी तरह से जाहिल तड़प तड़प कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं
मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं