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ग़ज़ल
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ज़ात-ओ-सिफ़ात-ए-हुस्न का आलम नज़र में है
महदूद-ए-सज्दा क्या मिरा ज़ौक़-ए-जबीं रहे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वही आस्ताँ है वही जबीं वही अश्क है वही आस्तीं
दिल-ए-ज़ार तू भी बदल कहीं कि जहाँ के तौर बदल गए