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ग़ज़ल
मिरी आँखों में जब भी तेरे मंज़र बैठ जाते हैं
तो इन ख़ाली सफ़ीनों में समुंदर बैठ जाते हैं
मुकेश आलम
ग़ज़ल
तू बिगड़ता भी है ख़ास अपने ही अंदाज़ के साथ
फूल खिलते हैं तिरे शोला-ए-आवाज़ के साथ