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ग़ज़ल
तुम टहनियों की फुल-झड़ियों से जश्न-ए-शाह-बलूत मनाना
शहज़ादे के शगूफ़े को इक शाख़चा-ए-मज़बूत बताना
यासिर इक़बाल
ग़ज़ल
बे-मा'नी ला-हासिल रद्दी शे'रों का है जाल उधर
जो चीज़ें बे-कार हैं प्यारे उन चीज़ों को डाल उधर
सबा नक़वी
ग़ज़ल
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
कि आख़िर मुस्लिमों में रूह फूंकी बादा-नोशी की