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ग़ज़ल
बारिश-ए-संग-ए-मलामत यूँ तो हर जानिब से थी
सर-बुलंद अपनी अना थी मुझ को फ़िक्र-ए-सर न था
जौहर बलियावी
ग़ज़ल
ऐ 'अना' तुम मत गिराना अपने ही किरदार को
उन को कहने दो कि ख़ुद-दारी कहाँ आ गई