aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "jhamaatii"
अजल भी जिन को सुन कर झूमती हैवो नग़्मे ज़िंदगी के गा रहा हूँ
अब सुब्ह ओ शाम शायद गिर्ये पे रंग आवेरहता है कुछ झमकता ख़ूनाब चश्म-ए-तर में
सुब्ह की तरह झमकता है शब-ए-ग़म का उफ़ुक़'फ़ैज़' ताबिंदगी-ए-दीदा-ए-तर तो देखो
हम ने तो रात को दाँतों से पकड़ कर रक्खाछीना-झपटी में उफ़ुक़ खुलता गया जाते हुए
अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिएअब मिरे पास ख़ज़ाना है लुटाने के लिए
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता हैलेकिन उस को फिर समझाया जा सकता है
चाँदनी झाँकती है गलियों मेंकोई साया मकान से निकला
आँखों में मेरी सुब्ह-ए-क़यामत गई झमकसीने से उस परी के जो पर्दा उलट गया
झूमती डालियों से जिस्म 'अदम'झूमती डालियों ने मार दिया
'अजीब ख़ौफ़ मुसल्लत था कल हवेली परलहु चराग़ जलाती रही हथेली पर
सफ़र से लौट जाना चाहता हैपरिंदा आशियाना चाहता है
जब तनी सलाख़ों से झाँकती है तन्हाईदिल की तरह पहलू से लग के बैठ जाते हो
मैं जो देखूँ तो झपकती नहीं आँखें मेरीऔर हज़रत मुझे अंधों की तरह देखते हैं
खुल गईं ज़ुल्फ़ें मगर उस शोख़ मस्त-ए-नाज़ कीझूमती बाद-ए-सबा फिरती है मस्तानी हुई
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही हैमियाँ ले लो जो क़ीमत आ रही है
मिरे नसीब का लिक्खा बदल भी सकता थावो चाहता तो मिरे साथ चल भी सकता था
कर तो लिया है क़स्द इबादत की रात कारस्ते में झूमती हुई इक शाम भी तो है
और कुछ यूँ हुआ कि बच्चों नेछीना झपटी में तोड़ डाला मुझे
फाड़ खाता है जो ग़ैरों को झपट कर सग-ए-यारमैं ये कहता हूँ मिरे शेर तिरा क्या कहना
अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडातो आ लिपटिए गले से ऐ जाँ झमक से कर झप चराग़ ठंडा
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