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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचा कर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझ को