आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "kaTnii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "kaTnii"
ग़ज़ल
हज़ारों गोर की रातें हैं काटनी 'नासिख़'
अभी तो रोज़-ए-सियह में तू बे-क़रार न हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
हमें तो शाम-ए-ग़म में काटनी है ज़िंदगी अपनी
जहाँ वो हों वहीं ऐ चाँद ले जा चाँदनी अपनी
शेरी भोपाली
ग़ज़ल
अभी तो दूर है मंज़िल कि काटनी हैं अभी
मिली जो विर्से में हैं उन मसाफ़तों को भी
जलील हैदर लाशारी
ग़ज़ल
मुझ को भी काटनी क़फ़स अपने की तीलियाँ
या टूटे या बचे मिरी मिन्क़ार हो सो हो