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ग़ज़ल
मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम
देता हूँ तुझ को तख़्त-ए-सुलैमान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा
लो हम भी न बोलेंगे ख़ुदा की क़सम अच्छा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दिल-ए-सितम-ज़दा बेताबियों ने लूट लिया
हमारे क़िबले को वहहाबियों ने लूट लिया
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तब से आशिक़ हैं हम ऐ तिफ़्ल-ए-परी-वश तेरे
जब से मकतब में तू कहता था अलिफ़ बे ते से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ
चौकूँ हूँ देख साए को अपने क़दम के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से
कि बना हुआ हो जो ख़ाक से उसे क्या मुनासिबत आग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे
मैं और तो क्या कोसूँ पर तुम से ख़ुदा समझे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है
वो जो हुस्न-ए-आलम-ए-नश्शा है उसे अब की ऐन-शबाब है
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है
है दिल पर अपने ज़ख़्म कि सीने पे हर्फ़ है
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन
रख दूँगा वहाँ काट के इक हूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ
मैं तो सुख़न में इश्क़ के बोलूँ न हाँ न हूँ