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ग़ज़ल
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है
कोई संग-ए-रह को ख़बर करो उसी आस्ताँ का इरादा है
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
ये ज़मीं बनती गई ये आसमाँ बनता गया