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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-ज़मीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़ज़ाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बाहर का धन आता जाता अस्ल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
चप्पे चप्पे पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक
दफ़्न होगा कहीं इतना न ख़ज़ाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
वो जो मा'सूम सा शा'इर है 'मुबारक' 'अहमद'
उस का दुनिया में फ़क़त तू है ख़ज़ाना आना