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ग़ज़ल
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़ब्र अपनी खोद कर ख़ुद लेट जाओ एक दिन
वक़्त किस के पास है मिट्टी उठाने के लिए
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
इश्क़ तुम से हो गया तो क़ब्र अपनी खोद ली
और हम करते भी क्या फ़रहाद हो जाने के बा'द
बिलाल सहारनपुरी
ग़ज़ल
चाहते हैं जो 'मुज़फ़्फ़र' ग़म-ए-हस्ती से फ़रार
बैठ जाएँ वो गढ़ा खोद के साधू की तरह
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
इसी आम की कोख से इक दिन मेरा भोला-पन उपजा था
इसी आम की जड़ें खोद कर इक दिन अपना बचपन ढूँडूँ