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ग़ज़ल
शराब-ए-इश्क़ में क्या जाने क्या तासीर होती है
कहीं ये ज़हर होती है कहीं इक्सीर होती है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
अगर वो अपने हसीन चेहरे को भूल कर बे-नक़ाब कर दे
तो ज़र्रे को माहताब और माहताब को आफ़्ताब कर दे
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ज़ीस्त का हासिल जवानी है मगर वो सिन गया
अस्ल जो सर्माया-ए-हस्ती था या'नी छिन गया