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ग़ज़ल
मचलती है मिरे आग़ोश में ख़ुशबू-ए-यार अब तक
मिरी आँखों में है इस सेहर-ए-रंगीं का ख़ुमार अब तक
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
मोहब्बत की जो फैली है ये निकहत बाग़-ए-आलम में
हुई है मुंतशिर ख़ुशबू-ए-यार आहिस्ता आहिस्ता
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है ज़िक्र-ए-यार क्यूँ शब-ए-ज़िंदाँ से दूर दूर
ऐ हम-नशीं ये तर्ज़ ग़ज़ल का कभी न था
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ख़ुशबू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार थी एहसास-ओ-फ़िक्र में
ज़ेहनों में अहल-ए-फ़न के महकती रही ग़ज़ल
बिस्मिल्लाह अदीम
ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
सफ़ीर-ए-जाँ हूँ हिसार-ए-बदन में क्या ठहरूँ
चमन-परस्तो न ख़ुशबू के बाल-ओ-पर बाँधो