क़िर्तास पे लहू सी चमकती रही ग़ज़ल
क़िर्तास पे लहू सी चमकती रही ग़ज़ल
अनवार-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न से दमकती रही ग़ज़ल
ख़ुशबू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार थी एहसास-ओ-फ़िक्र में
ज़ेहनों में अहल-ए-फ़न के महकती रही ग़ज़ल
वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल तो कभी बन के इज़्तिराब
सीने में दिल की तरह धड़कती रही ग़ज़ल
गेसू-ए-‘अम्बरीं है कि शाख़-ए-गुलाब है
आहट हवा की पा के लचकती रही ग़ज़ल
घर से निकल के 'ग़ालिब'-ओ-'सौदा'-ओ-'मीर' के
सहरा में ज़िंदगी के भटकती रही ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ें सँवारने लगी दोशीज़ा-ए-हयात
महफ़िल में इस अदा से चहकती रही ग़ज़ल
मिस्ल-ए-शराब साग़र-ए-'ख़याम'' से 'अदीम'
हाथों में मय-कशों के छलकती रही ग़ज़ल
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