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ग़ज़ल
यूँ मुकाफ़ात-ए-अमल सब कुछ उठा कर ले गया
सर-फिरा सैलाब बस्ती को बहा कर ले गया
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना
अपने हाथों से किया हाल परेशाँ अपना