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आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना

मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़

आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना

मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़

MORE BYमोहम्मद यूसुफ़ रासिख़

    गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना

    अपने हाथों से किया हाल परेशाँ अपना

    वो दिखाते हैं किसे जल्वा-ए-पिन्हाँ अपना

    क्या करें हाल बयाँ मूसी-ए-इमराँ अपना

    जी उठे देख के हम कूचा-ए-जानाँ की बहार

    आँख के सामने था चश्मा-ए-हैवाँ अपना

    इश्क़ में हौसला-ए-ज़ब्त हो क्या मा'नी

    है वो मजनूँ जो करे चाक गरेबाँ अपना

    हाए मुँह ढाँक के रोने की भी सूरत रही

    दश्त में छीन लिया ख़ार ने दामाँ अपना

    फूल के हुस्न पे सरमस्त हैं मुर्ग़ान-ए-चमन

    किस से अफ़्साना कहे बुलबुल-ए-नालाँ अपना

    दिन को हम बादिया-पैमाई किया करते हैं

    बिस्तर अब रात को है रेग-ए-बयाबाँ अपना

    तुम सँभालोगे तो दिल अपना सँभल जाएगा

    वर्ना क़ाबू नहीं दिल पर शब-ए-हिज्राँ अपना

    अभी कमसिन हो शबाब आएगा आते आते

    रंग बदलेगा अभी आलम-ए-इम्काँ अपना

    देखने के लिए रहमत के करिश्मे हैं बहुत

    कौन देखेगा वहाँ नामा-ए-इस्याँ अपना

    साफ़ रुस्वाई के आसार नज़र आते हैं

    कहने सुनने में नहीं है दिल-ए-नादाँ अपना

    याद आने लगी यारान-ए-वतन की सोहबत

    दश्त-ए-ग़ुर्बत में है अल्लाह निगहबाँ अपना

    कौन होता है मुसीबत में बशर का हमदम

    शब-ए-फ़ुर्क़त के सिवा कौन है पुरसाँ अपना

    क्यूँ मिला है हमें आख़िर ये कफ़न का पर्दा

    मौत की आँख में खटका तन-ए-उर्यां अपना

    दिल कोई चीज़ नहीं तेरी मोहब्बत के बग़ैर

    मैं तो समझा था ग़म-ए-इश्क़ को मेहमाँ अपना

    बादा-नोशी से ये एज़ाज़ मिला है ज़ाहिद

    आप को शैख़ समझते हैं मुसलमाँ अपना

    आज हर क़तरे से आती है अनल-हक़ की सदा

    ये दिखाता है असर ख़ून-ए-शहीदाँ अपना

    मलक-उल-मौत की सूरत से मैं घबराता हूँ

    आप रखते मुझे शर्मिंदा-ए-एहसाँ अपना

    दौर-ए-साग़र में नज़र आए निज़ाम-ए-क़ुदरत

    साथ इस तरह से दे गर्दिश-ए-दौराँ अपना

    आशिक़-ए-ज़ार पे रह रह के नज़र पड़ती है

    ढूँढती है कोई हमदम शब-ए-हिज्राँ अपना

    हम-क़फ़स जितने हैं सय्याद से थर्राते हैं

    क्या कहूँ किस से कहूँ हाल-ए-परेशाँ अपना

    हम ने 'रासिख़' तिरे उस्ताद का देखा है कलाम

    आज हम-सर नहीं रखता वो सुख़न-दाँ अपना

    ग़ैर की बज़्म के मुहताज नहीं हम 'रासिख़'

    शाद-ओ-आबाद रहे कुलबा-ए-अहज़ाँ अपना

    मय-कशी है तिरे चेहरा से नुमायाँ 'रासिख़'

    तू ने क्या हाल किया है ये मेरी जाँ अपना

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