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ग़ज़ल
वो ज़ुल्फ़ है तो हर्फ़-ए-ततार-ओ-ख़ुतन ग़लत
इस लब के होते नाम-ए-अक़ीक़-ए-यमन ग़लत
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
नज़र में हुस्न का तूफ़ाँ समा नहीं सकता
मैं अपने ख़्वाब से दामन छुड़ा नहीं सकता
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
मिरे लहू से है इक रंग-ए-नौ बहार-ए-ग़ज़ल
ग़रीब-ए-शहर हूँ लेकिन हूँ शहर-यार-ए-ग़ज़ल
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
मिरे लहू से है इक रंग-ए-नौ-बहार-ए-ग़ज़ल
ग़रीब-ए-शहर हूँ लेकिन हूँ शहर-यार-ए-ग़ज़ल