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ग़ज़ल
वो ज़ुल्फ़ है तो हर्फ़-ए-ततार-ओ-ख़ुतन ग़लत
इस लब के होते नाम-ए-अक़ीक़-ए-यमन ग़लत
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ
मिरी आँख कैसे छलक गई मुझे रंज है ये बुरा हुआ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
मुझे इस का कोई गिला नहीं कि बहार ने मुझे क्या दिया
तिरी आरज़ू तो निकाल दी तिरा हौसला तो बढ़ा दिया
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
सुख़न में रंग तुम्हारे ख़याल ही के तो हैं
ये सब करिश्मे हवा-ए-विसाल ही के तो हैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले
कि जैसे अजनबी कोई इक अजनबी से मिले
गुलाम जीलानी असग़र
ग़ज़ल
कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है
हर कोई याँ अपने अपने पैरहन में मस्त है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ज़रा ज़रा सी आन में वो जान-ए-जाँ बदल गया
कभी तो बात काट दी कभी ज़बाँ बदल गया