न मुश्त-ए-गुल न कफ़-ए-नस्तरन में ठहरे हैं
न मुश्त-ए-गुल न कफ़-ए-नस्तरन में ठहरे हैं
चमन के रंग भला कब चमन में ठहरे हैं
मुसाफ़िरान-रह-ए-बे-निशाँ हैं हम ऐ दोस्त
जो लम्हा भर को तिरी अंजुमन में ठहरे हैं
तिरा ख़याल भी दिल से निकल ही जाएगा
कब आहुआन-ए-रमीदा ख़ुतन में ठहरे हैं
बस एक दस्तक-ए-ग़ैबी के इंतिज़ार में हम
तमाम उम्र सरा-ए-बदन में ठहरे हैं
चले तो जादा-ए-ख़ूँ पर चले हैं अहल-ए-वफ़ा
रुके तो साया-ए-दार-ओ-रसन में ठहरे हैं
मिरी ग़ज़ल मिरे अशआ'र और कुछ भी नहीं
गुमाँ के अक्स सराब-ए-सुख़न में ठहरे हैं
पिरो लूँ तार-ए-नज़र में कि ओस के मोती
न मुश्त-ए-गुल न कफ़-ए-नस्तरन में ठहरे हैं
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