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ग़ज़ल
दिल की इस कोहर-ज़दा यास भरी बस्ती में
तुझ से ही माँग के लानी है तिरे शहर की रात
होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल
सर्द-मेहरी के कोहर में उस का चेहरा क्या मिले
इन धुँदलकों में उसे तू ढूँढता रह जाएगा
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
कोहर में गुम-सुम समाअतो तुम गवाह रहना
मैं एक दीवार-ए-गिर्या हर रात चुन रहा हूँ
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
न ज़ीस्त की कोई हलचल न मौत ही की फ़ुग़ाँ
है कोहर कोहर सा इक शहर-ए-बे-हरस मुझ में