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ग़ज़ल
ग़लत है इश्क़ में ऐ बुल-हवस अंदेशा राहत का
रिवाज इस मुल्क में है दर्द-ओ-दाग़-ओ-रंज-ओ-कुलफ़त का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
आओ कि अब तो जुरअत-ए-जुर्म-ए-सुख़न करें
फ़िक्र-ए-सुख़न को छोड़ के फ़िक्र-ए-चमन करें
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
थी कहाँ जुरअत किसी में हाँ मगर उस ने किया
दिल के इस ख़ाली मकाँ को आज घर उस ने किया
जहाँ आरा तबस्सुम
ग़ज़ल
याद कर वो हुस्न-ए-सब्ज़ और अँखड़ियाँ मतवालियाँ
काटते हैं रो ही रो सावन की रातें कालियाँ