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ग़ज़ल
तिरे जोश-ए-हैरत-ए-हुस्न का असर इस क़दर सीं यहाँ हुआ
कि न आइने में रही जिला न परी कूँ जल्वागरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर
नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ग़िज़ा इसी में मिरी मैं इसी ज़मीं की ग़िज़ा
सदा फिर आती है क्यूँ पर्दा-ए-ख़ला से मुझे
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
तारीफ़ तिरे क़द की अलिफ़-वार सिरीजन
जा सर्व-ए-गुलिस्ताँ कूँ ख़ुश-अल्हाँ सूँ कहूँगा
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
शैख़ यहाँ बात तिरी पेश न जावे हरगिज़
अक़्ल कूँ छोड़ के मत मज्लिस-ए-रिंदान में आ
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
वो गुल-बदन का अजब है मिज़ाज-ए-रंगा-रंग
फ़जर कूँ लुत्फ़ तो फिर शाम कूँ सितम का सितम