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ग़ज़ल
इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
एक वज़ाहत के लम्हे में मुझ पर ये अहवाल खुला
कितनी मुश्किल पेश आती है अपना हाल बताने में