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ग़ज़ल
दुआ-ए-मग़्फ़िरत जब माँगते हैं उस से रो रो कर
बराबर जोश में ख़ालिक़ की रहमत आ ही जाती है
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
समझता हूँ वसीला मग़फ़िरत का शर्म-ए-इस्याँ को
कि अश्कों से मिरे धुल जाएगा दामान-ए-तर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
दुआ-ए-मग़्फ़िरत तुम दो उतारे क़ब्र में कोई
पढ़ो तल्क़ीन तुम शाना हिलाए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
क्यूँ उन से वक़्त-ए-क़त्ल किया शिकवा ग़ैर का
करनी थी मग़फ़िरत ही की अपनी दुआ मुझे
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
ख़रीदारी न हो क्यूँकर तिरे बाज़ार-ए-तलक़ीं में
नजात-ओ-मग़फ़िरत की जिंस सस्ती है गुरु-नानक