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ग़ज़ल
जो मज़मून-ए-ख़त-ए-पुर-शौक़ मेरा वो नहीं पढ़ता
ये मतलब है कि मुझ को मअनी-ओ-मतलब से क्या मतलब
नूह नारवी
ग़ज़ल
तुम को इक्सीर मुबारक रहे दौलत-मंदो
मैं वो हूँ ख़ाक जो नज़रों में समा भी न सकूँ
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
मस्त-ओ-बे-ख़ुद तेरे मय-ख़ाने का बाम-ओ-दर बने
साक़िया गर तेरी चश्म-ए-मस्त का साग़र बने
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
ग़ज़ल
इश्क़ में हद ना-तवाँ हूँ मानी-ओ-बहज़ाद से
उठ नहीं सकता कभू ख़ाका मिरी तस्वीर का