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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़बाँ से कुछ न कहना बावजूद-ए-ताब-ए-गोयाई
खुली आँखों से बस मंज़र ब मंज़र सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'मंज़र'-ए-सादा-दिल जिन्हें दोस्त समझ रहे थे तुम
आज वही वफ़ा-सरिश्त हो गए हम से दूर दूर
मंज़र अय्यूबी
ग़ज़ल
'मंज़र' तपिश-ए-रेग में क्या ढूँड रहे हो
सहरा की कड़ी धूप में साया नहीं होता
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
ग़ज़ल
देते रहे थे हम उन्हें पास-ए-वफ़ा का वास्ता
इतनी सी बात थी मगर गुज़री है नागवार क्या