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ग़ज़ल
दर्द-ओ-ग़म-ए-फ़िराक के ये सख़्त मरहले
हैराँ हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
त'अल्लुक़ तोड़ने में पहल मुश्किल मरहला था
चलो हम ने तुम्हारा बोझ हल्का कर दिया है