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ग़ज़ल
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
घड़ी भर रंग निखरा सूरत-ए-गुल-हा-ए-तर मेरा
उसी हस्ती पे उस गुलशन में था ये शोर-ओ-शर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
दिल हुस्न के अंदाज़ से मसहूर बहुत है
आँख उस बुत-ए-तन्नाज़ की मख़मूर बहुत है
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
ग़ज़ल
दिल असीर-ए-ग़म-ए-दौराँ है ग़ज़ल क्या कहिए
ज़िंदगी सर-ब-गरेबाँ है ग़ज़ल क्या कहिए
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
ग़ज़ल
क्या शोख़-ओ-शंग शय निगह-ए-शर्मगीं भी है
चिलमन से झाँकती भी है चिलमन-नशीं भी है
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
ख़ुद ही महबूब लिए अपना पयाम आया है
मंज़िल-ए-इश्क़ में ऐसा भी मक़ाम आया है